लिखो, लिखो, जल्दी लिखो—नया इतिहास! (व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)

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लीजिए, अब इन सेकुलरवालों को मोदी जी के शिक्षक अवतार से भी दिक्कत है। बेचारे अमित शाह ने यह कहकर मोदी जी के शिक्षक अवतार की आरती ही तो उतारी थी कि गुजरात में मोदी जी के राज ने सबक सिखाया था। मोदी जी के राज ने पक्का सबक सिखाया था। मोदी के राज ने 2002 में ऐसा पक्का सबक सिखाया था कि पूरे बीस बरस बाद 2022 तक, सबक लेने वाले भूले नहीं हैं। और अंत में यह कि, 2022 के चुनाव में जो कोई मोदी जी की खड़ाऊं पर वोट चढ़ावै, 2002 के सबक का 2027 तक के लिए पक्का एक्सटेंशन पावे! यानी किसी भी तरह से देखा जाए, शाह साहब शुद्ध रूप से सीखने-सिखाने की बात कर रहे थे और विश्व गुरु के आसन के लिए मोदी जी के पर्सनली भी दावेदार होने की याद दिला रहे थे। पर सीखने-सिखाने की बात छोडक़र, सेकुलरवाले हैं कि खून, लाशें, खून से सने हाथ, वगैरह न जाने क्या-क्या आउट ऑफ कोर्स सवाल उठा रहे हैं।

वैसे ऐसा नहीं है कि सबक सिखाने में इन सब चीजों का कोई काम ही नहीं हो। पर वह सब मेडिकल कोर्स का मामला है और अमित शाह भले ही मेडिकल की पढ़ाई हिंदी में पढ़वाने के लिए कमर कसे हुए हों, फिर भी एंटायर पॉलिटिकल साइंस के एमए मोदी जी से मेडिकल की पढ़ाई तो शाह जी भी नहीं करवाना चाहेंगे। वैसे आने को तो सैन्य विज्ञान की पढ़ाई में भी खून वगैरह आते ही होंगे, पर उसके लिए अब अग्निवीरता का कोर्स है ही। वैसे भी गांधी के देश में मोदी जी मार-काट के सबक सिखाते क्या अच्छे लगे!

मोदी जी के सबक सिखाने को एहसान जाफ़री वगैरह के मामलों से जोड़ने की सेकुलरवालों की इसी शरारत की नाराजगी, शाह साहब ने नागपुरी फीताधारी इतिहास लेखकों पर निकाली लगती है। शाह साहब ने साफ-साफ कह दिया कि अब वह यानी उनके मोटा भाई इसका कोई बहाना नहीं सुनेंगे कि इतिहास में यह ऐसा लिखा है, इतिहास में वैसा लिखा है; इतिहास लिखने वालों ने उस महान हिंदू साम्राज्य को छोटा कर दिया है, इतिहास लिखने वालों ने उस महान हिंदू को कम तोल दिया है। अब शिकायती चिट्ठियां नहीं नया इतिहास लिखकर लाओ। जैसा चाहिए वैसा गढ़वाओ। जैसे चाहिए वैसे इतिहास बनाओ। बस नया इतिहास लिखकर दिखाओ! अमृतकाल नया है, तो पुराने इतिहास का क्या काम? कोई इतिहास माने न माने, तुम तो बस लिखकर दिखाओ। एक नया चमचमाता हुआ इतिहास लिखने के अपने संकल्प को पूरा करने से हमें-आपको कोई नहीं रोक सकता है। तथ्य भी नहीं। साक्ष्य भी नहीं। सत्य भी नहीं। मन से लिखकर लाओ, बस लिखकर दिखाओ। मन की कल्पना का सत्य भी तो सत्य ही होता है, विशेष रूप से स्वधर्म और स्वदेश का गौरव दिखाने वाला सत्य। उन्हें महानतम बनाने वाली कल्पना का सत्य। और हां! जो अपने से किसी भी तरह भिन्न हैं, उन्हें नीचा दिखाने वाला सत्य भी।

वैसे शाह जी की खीझ भी कुछ गलत नहीं है। नागपुरी फीताधारियों के लिए उनके मोटा भाई ने क्या-क्या नहीं किया है। पहली बार, आठ साल से ज्यादा का उनका अपना राज तो खैर दिया ही है, पद दिए हैं, अधिकार दिए हैं, नौकरियां दी हैं, पैसे दिए हैं, छपने-छपाने के सारे मौके दिए हैं, पुरस्कार दिए हैं और सबसे बड़ी बात, पढ़े-लिखों से प्रतियोगिता से उन्हें पूरा संरक्षण दिया है, देसी तो देसी, विदेशी पढ़े-लिखों से प्रतियोगिता से भी। पढ़े लिखों को नौकरियों से, शिक्षा संस्थाओं से, पाठ्य पुस्तकों से, छपने-छपाने के मौकों से, शोध के लिए साधनों से बाहर किया है। ज्यादा शोर मचाने वालों को यूएपीए तक में बंद किया है। इससे ज्यादा मोदी जी क्या कर सकते हैं! पर इन नागपुरी फीताधारियों ने बदले में उन्हें क्या दिया, दूसरों के इतिहास की शिकायतों के सिवा। आठ साल में इनसे एक ढंग का नया इतिहास तक लिखकर नहीं दिया गया। अरे कुछ भी लिख देते, मन से ही लिख देते, पर नया गौरवपूर्ण इतिहास तो लिख देते।

पर इनसे तो इतना भी नहीं हुआ कि मोदी जी के 2002 के सबक की ही ऐसी नयी व्याख्या कर देते कि हिंदू देखें तो उसमें हिंदू हृदय सम्राट नजर आए और दूसरे देखें तो सिर्फ अडानी-अंबानी प्रेम। देखा नहीं, कैसे इसी कमजोरी की वजह से अमरीकियों ने मौका पाते ही झट से कह दिया कि पत्रकार खशोगी की हत्या के मामलों-मुकद्दमों से सऊदी अरब के तानाशाह को न कम न ज्यादा, सिर्फ उतना ही संरक्षण दिया है, जितना संरक्षण हमारे मोदी जी को 2002 के सिलसिले में मुकद्दमों से दिया गया है। यानी मोदी जी को दस साल से ज्यादा वीसा नहीं देने की गलती के लिए माफी मांगने की तो छोड़ो, पटठे कह रहे हैं कि स्पेशल छतरी लगाकर अब भी मोदी जी को मुकद्दमों से बचाया हुआ है। वर्ना रॉक शो टाइप रैली की जगह, अमरीका में वारंट की तामील का रॉक शो नजर आता! बताइए, सुप्रीम कोर्ट तक ने मोदी जी को क्लीन चिट दे दी, बल्कि क्लीन चिट पर सवाल उठाने वालों को जेल तक भिजवा दिया, फिर भी नये इतिहासकार विदेशियों को इतना तक नहीं समझा पाए कि मोदी जी तो 2002 में भी राजधर्म का ही पालन कर रहे थे, बस अटल जी की ही राजधर्म की नागपुरी पढ़ाई में जरा सी कसर रह गयी थी। खुद को कवि जो समझते थे। कवियों को राजाओं के लिए नुकसानदेह यूं ही थोड़े ही माना गया है।

लेकिन, इससे कोई यह नहीं समझे कि मोदी जी या उनके हनुमान अमित शाह जी, लेखकों वगैरह के खिलाफ हैं। मोदी जी तो खुद भी छठे-छमाहे वाले कवि हैं और मोरों के लिए तो एक साथ कई कविताएं लिख चुके हैं; उनका राज लेखकों के खिलाफ कैसे हो सकता है। वास्तव में उनकी तरफ से शाह जी ठेके पर जो नया इतिहास लिखा रहे हैं, उसमें सबसे ज्यादा मौका तो लेखकों के लिए ही है। अब इतिहासकार कितनी ही खुदाई कर लें, नागपुरी पसंद के डेढ़ सौ साल या ज्यादा चले 30 साम्राज्य और 300 महान हिंदू राष्ट्र योद्धा, खोजे से तो मिलने से रहे। टार्गेट पूरा करने के लिए आखिर में तो लेखक यानी कथाकार ही काम आएंगे। कथाकारों के लिए शानदार मौका है — इतिहास कहकर, अपने मन से कुछ भी लिखो। बस जल्दी लिखो। लिखो, लिखो, जल्दी लिखो-नया इतिहास।

(इस व्यंग्य के लेखक वरिष्ठ पत्रकार और ’लोकलहर’ के संपादक हैं।)

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