ये चुनाव चुनाव क्या है? (व्यंग्य: राजेंद्र शर्मा)

राजेन्द्र शर्मा
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बाई गॉड‚ ये विरोधी भी मोदी जी के खिलाफ कैसे–कैसे षडयंत्र रच लेते हैं। और कोई इक्का–दुक्का षडयंत्र नहीं‚ षडयंत्र दर षडयंत्र। मोदी जी भारत जोड़ो यात्रा वाले षडयंत्र की पूरी तरह से काट कर भी नहीं पाए थे‚ तब तक विरोधियों ने अध्यक्ष चुनाव का षडयंत्र आगे कर दिया। बताइए‚ कांग्रेस वाले अब अध्यक्ष का फैसला चुनाव से करेंगे। जो पहले नहीं हुआ‚ अब होगा। खड्गे और थरूर में चुनाव मुकाबला होगा। और यह सब क्योंॽ सिर्फ नड़्ड़ा जी को चुनाव–मुक्त अध्यक्ष बताने के लिए। और मोदी जी को इसका उलाहना देने के लिए कि वंशवादी पार्टी में चुनाव हो रहा है और वंशवाद विरोधी पार्टी में कार्यकाल विस्तार; बाई गॉड यह कैसा वंशवाद विरोध है!

खैर! मोदी जी ने भी कोई कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं। पार्टी अध्यक्ष का चुनाव से फैसला कराने की विपक्षी चाल में कतई नहीं आए। चट–पट नड़्ड़ा जी का एक्सटेंशन हुआ और फटाफट बंदा चुनाव के काम में भी जुट गया। विपक्षी अगर सोचते थे कि पार्टी वाले दिखावटी चुनाव के चक्कर में मोदी जी की पार्टी सरकार वाले असली वाले चुनाव की तैयारियों के दो मिनट भी खराब करेगी‚ तो वे गलत थे। मोदी जी ऐसी नुमाइशी चीजों में टैम की बर्बादी के एकदम खिलाफ हैं। वैसे भी वह नेशन फर्स्ट वाले हैं। नेशन फर्स्ट में‚ देश–प्रदेश का चुनाव भी तो फर्स्ट हुआ। उनके लिए हमेशा‚ सरकार वाला चुनाव फर्स्ट है। फर्स्ट क्या‚ एक वही तो चुनाव है। जो भी करते हैं‚ चुनाव के लिए ही करते हैं। पर पार्टी का चुनाव भी क्या कोई चुनाव है‚ लल्लू!

अब प्लीज कोई यह मत पूछ देना कि नेशन फर्स्ट के लिए चुनाव क्या जरूरी हैॽ यह मोदी जी की दुःखती नब्ज है‚ इसे कोई न छुए। नेशन फर्स्ट के लिए चुनाव जरूरी तो क्या, असल में नुकसानदायक है। खाली–पीली टैम की बर्बादी। जितनी देर में चुनाव होता है‚ उतनी देर में नेशन पिछड़ने लगता है। सब जानते हैं‚ फिर भी मोदी जी अभी तक बर्दाश्त कर रहे हैं। वरना नड़्ड़ा जी की तरह‚ अपना परमानेंट एक्सटेंशन नहीं करा लेते!

खैर‚ तब तक के लिए थैंक यू मोदी जी‚ नये इंडिया में भी कम से कम सरकार वाला चुनाव कराने के लिए। और सरकार को चुनाव की हार–जीत से मुक्त कराने के लिए भी।

(लेखक प्रतिष्ठित पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)

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