नई दिल्ली रिपोर्ट/ सैयद रागिब अली
2024 के आम चुनाव का समय नजदीक आते ही सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपनी राजनीतिक बिसात बिछानी शुरू कर दी है। और सभी अपने-अपने कोर वोटर्स को लुभाने वह अपनी ओर खींचने के प्रयास में लग गए हैं लेकिन भारतीय राजनीति में एक बड़ा तबका जोकि आने वाले भारतीय राजनीति की दिशा और दशा तय करेगा वह है केवल दलित दलित समाज जिसका अभी तक इतिहास यह रहा है कि वह आधिकारिक संख्या में एक पार्टी को ही वोट करते हैं जिससे केंद्र में सरकार बनाने में मदद मिलती है पिछले दो तीन चुनावों से जो पार्टियां दलित वोट का दंभ भर्ती थी उनको भी दलित समाज ने कुर्सी से बेदखल करने का कार्य किया है।
इसका मूल कारण है इस समाज की अनदेखी होना काशीराम मायावती की राजनीति से आगे बढ़कर अब यह समाज अलग-अलग पार्टियों में बटा हुआ दिखाई देता है, तो कभी एक साथ आकर एक ही पार्टी को वोट करता हुआ अभी दिखाई देता है पिछले कुछ चुनाव से बहुजन समाज पार्टी से भी इस समाज का मोहभंग हुआ है और बड़े बहुतायत संख्या में यह समाज भारतीय जनता पार्टी की ओर गया है जिसके कारण केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार तटस्थ रूप से बनी हुई है।
लेकिन अब धीरे-धीरे इन तीन बड़े प्रदेशों में भारतीय जनता पार्टी को दलित वोट का समर्थन हासिल करने में एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ेगा स्वतंत्रता संग्राम के बाद दलित वोटर्स बहुतायत में कांग्रेस के पक्ष में वोट करता आया था फिर उसके बाद राजनीतिक परिस्थितियां बदलाव की ओर गई और कभी क्षेत्रीय पार्टियों में तो कभी राष्ट्रीय पार्टियों में इस समाज की बड़ी संख्या में उपस्थिति देखी गई उत्तर प्रदेश राज्य में मुलायम सिंह यादव एमवाई समीकरण के साथ यादव मुस्लिम वोट बैंक के सहारे राज्य में सरकार बना चुके हैं वहीं बसपा सुप्रीमो भी मुस्लिम और दलित कार्ड खेलकर राज्य में तीन बार मुख्यमंत्री बन चुकी हैं लेकिन इस बार 2024 के आम चुनाव में नरेंद्र मोदी को दलित वोट हासिल करने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ेगी क्योंकि योगी सरकार से इस समाज का जुड़ाव ज़्यादा देखने को नहीं मिला है।
उधर कांग्रेस पार्टी के सर्वे सर्वा राहुल गांधी अपनी टीम के साथ 2024 के लिए पूरे प्रयास में लगे रहे इस बड़े वोट बैंक को अपनी और आकर्षित करने के लिए लेकिन दलित वोटर्स अपने भविष्य के लिए क्या निर्णय लेता है यह आने वाला समय बताएगा कि किस पार्टी को वह अपना समर्थन देता है लेकिन फिलहाल स्थितियां बदलती हुई नजर आ रही है। इन तीनों राज्यों में सर्वाधिक 20% से लेकर 35% तक दलित वोटर्स अपनी क्षमता रखता है केंद्र में सरकार किसकी बनेगी इस बात पर निर्भर करेगा कि दलित समाज किसको वोट करेगा।
लिंक फ़ोटो देशबंधु से साभार