शमरोज खान सूरजपुर
सूरजपुर. जिस शासकीय सड़क मद की भूमि पर ग्रामीणों का रास्ता था उसे गांव के दबंगों ने खुलेआम कब्जा बना दिया मकान का निर्माण करा दिया जिससे ग्रामवासी आना-जाना हुआ अवरुद्ध हो गया है. पूरा मामला भैयाथान ब्लाक के हर्रापारा का है जहाँ के रहने वाले विजेन्द्र कुशवाहा ने राजस्व सचिव को पत्र लिखकर बताया कि उसकी स्वामित्व व आधिपत्य की पैतृक भूमि ग्राम भैयाथान (हर्रापारा) प.इ.नं.13 रा.नि.मं. व तह. भैयाथान, जिला सूरजपुर (छ.ग.) में ख0नं0 619 / 1 रकबा 0.03 हे. भूमि स्थित है उक्त भूमि से लगी हुई शासकीय सड़क मद की भूमि ख.नं. 847, 425 रकबा 0.25 है. भूमि लगी हुई है। जिससे ग्रामवासी आवाजाही करते है। गांव के उग्रसेन, राजकुमार, सुरेन्द्र ने शासकीय सड़क मद की भूमि में जबरन कब्जा कर मकान निर्माण किया, मकान निर्माण करने के समय वह तहसील भैयाथान के समक्ष विधिवत शिकायत कर निस्तारी बंद होने पर बताया गया था जिसका कार्यवाही विलम्ब से करने के कारण मकान निर्माण का कार्य पूर्ण हो गया, हल्का पटवारी से मौका जांच कराया मौका जांच के दौरान हल्का पटवारी ने स्पष्ट रूप से बताया कि ये लोग शासकीय सड़क मद की भूमि पर मकान निर्माण का कार्य किया है और निस्तारी बंद कर दिया है जिसके बाद भी तहसीलदार भैयाथान के द्वारा कोई भी कार्यवाही नहीं किया गया बल्कि स्थगन आदेश खरिज कर दिया गया।
अवैध निर्माण की जानकारी वह तहसीलदार एवं थाना प्रभारी को देते रहे। जबकी हल्का पटवारी ने बेजा कब्जा के संबंध में अपना प्रतिवेदन न्यायालय में प्रस्तुत किया है जिसके बाद भी कोई कार्यवही नही हुई। उक्त भूमि शासकीय सड़क मद की भूमि है, जिस पर ग्राम वासियों एवं मवेशियों का निस्तार होता है. इनके द्वारा निरन्तर कब्जा कर उस पर लगातार निर्माण का कार्य जारी रखते हुये मकान बना दिया है। अब पूर्णरूप से सड़क को बन्द करते जा रहे है जिससे ग्रामीण सहित मवेशियों का निस्तारी आवाजाही बंद होने से ग्रामीण परेशान है। तहसीलदार व एसडीएम सक्षम अधिकारियो से गुहार लगा कर बेजाकब्जा हटाने की फरियाद की थी लेकिन किसी तरह कार्यवाही न होने पर पीड़ित ने राजस्व सचिव को पत्र लिखकर शासकीय सड़क मद के भूमि को जबरन किये गये कब्जा से बेदखली की कार्यवही कराने की गुहार लगाई है।
भैयाथान तहसील कार्यालय मे अखिर कब मिलेगी लोगो को न्याय
सूरजपुर भैयाथान तहसील कार्यालय जो राजस्व प्रकरणों में न्यायालय की पहली सीढ़ी होती है और जमीन जायदाद मामलों में इंसान का पहला पाला तहसील कार्यालयों से ही पड़ता है पर पहली सीढ़ धीरे-धीरे ये भ्रष्टाचार के गढ बनते जा रहे हैं आम आदमी कागज प्रस्तुत कर न्याय की गुहार लगाते हुए इन कार्यालयों के चक्कर काटते अक्सर देखा जा सकता है जमीन जायदाद के मुकदमे हो नामांतरण हो सामान्य नामांतरण हो या अवैध कब्जों की शिकायत हो अनाधिकृत निर्माण का मामला हो या राजस्व रिकार्ड में सुधार का मामला हो लोक सबसे पहले न्याय की आस में तहसील कार्यालय का ही चक्कर लगाते हैं परंतु यहा व्यापक भ्रष्टाचार अफसरशाही और बाबू गिरी का अक्सर शिकार हो जाते हैं हालात तो यह भी है कि छोटे-छोटे मामलों में वर्षों फैसला पेंडिंग रहता है लोगों की ऐडिया घीस जाती है न्यायालय के चक्कर लगाने में और अंत न्याय व्यवस्था पैसों की चमक आगे दम तोड़ देती है राजस्व मामलों में पटवारी कार्यालय के बाद और देश के उच्चतम न्यायालय के पूर्व तहसील न्यायालय की भूमिका सर्वोत्तम मायने रखती है क्योंकि किसी न्यायालय में पारित आदेश पंचनामा गवाही साक्ष्यो के एकत्रित करण ओर निर्मित दस्तावेज के आधार पर राजस्व मामलों के निराकरण की कवायद निम्न से लेकर उचित स्तर तक चलती है परंतु यहां आलम यह है कि वर्तमान मैं तहसील कार्यालय धन उगाही के केंद्र मात्र बनकर रह गया हैं जो धनबल के जरिए किसी के भी पक्ष में आदेश पारित कराने के लिए जाने जा रहे हैं
कारण यह है कि यदि इन न्यायालयो से गलत आदेश पारित हो भी गया जिससे ऊपर चुनौती देने पर गलत पाया भी गया तो भी तहसील कार्यालय में बैठे अधिकारी और बाबू पर कोई कार्यवाही नहीं होती इन पर कोई प्रकण नहीं बनता यही कारण है कि यह कार्यालय निरंकुशता का पर्याय कारण बनते जा रहे हैं इन सब में पिसता आम आदमी है जो मामले आसानी से तहसील कार्यालय से ही निपटाए जा सकते हैं यह मामले धीरे-धीरे इतना वृत्त रूप ले लेते हैं कि दुनिया बदल जाती है पर मामले वहीं रहते हैं क्या अब तहसीलदार के हटने के बाद ही लोगो को मिलेगा न्याय