राजमुकुट का सारांश…. इस व्यंग्य का कोरिया जिला के बैकुंठपुर/मनेंद्रगढ़/चिरमिरी से कोई लेना-देना नहीं है।

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एक बार की बात है- एक राजा का एक छोटा पुत्र था दुलारा,

दुलारा होने और राजा के सबसे ज्यादा करीब होने के कारण राजा उसे हमेशा कंधों पर ही उठाकर रखता था।

बाल्यकाल में ही उस राजकुमार का राजतिलक कर दिया गया, जिस राजकुमार को यह तक पता नही था कि मै राजा बन गया हूॅं, भई बच्चा था वो- धीरे-धीरे वह बड़ा हो गया, इस समय वो लगभग 23 साल का हो चुका है। 23 साल का उम्र होने के बाद भी उसकी हरकत बच्चों जैसी ही है। जैसे नाम का राजा, जैसे दूसरों के भरोसे पर ही टिके रहने वाला जैसे परपोषी जीव।

जवान हो जाने के बाद भी व्यापार/व्यवहार आदि में दूसरों पर टिका रहना उसकी आदत सी बन गई थी, एक दिन राजा स्वर्ग सिधार गए।

और राजा के मझले बेटे ने अपनी मेहनत से अपना अस्तित्व बनाया था और राजकुमार को अपने से यह कहकर अलग कर दिया कि तुम अब 23 साल के जवान हो चुके हो…तब राजा के परपोषी जीव ने उसका विरोध करना शुरू कर दिया।

और अब वह यह सोचकर परेशान है कि मेरा क्या होगा अब,मै तो ठहरा परपोषी जीव।

जो कि हर चीज में अपने भाई के भरोसे टिका रहता था। लेकिन वक्त का पहिया घूम गया। अब परपोषी जीव 23 साल का जवान है। उसे अपने अस्तित्व को खुद बनाना चाहिए और अपनी जिम्मेदारियों को खुद समझना चाहिए। जवान होने के बाद भी भाई पर टिके रहना कहां तक जायज है आप ही बताऐं।

इस बात से जिला बननेें का कोई लेना-देना नही है।

मेरा नाम है घोंचू की कलम से

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