भरथरी गायिका सुरुज बाई की 5 वां पुण्यतिथि पर विशेष आलेख: सुरुज बाई खांडे / शख्सियत

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रामसाय की सुरमोहनी सुरुज बाई छत्तीसगढ़ की गौरव …
“घोड़ा रोवय घोड़ासार म ,हाथी रोवय हाथीसार म …मोर रानी ये या ,महलों में रोवय …”
भरथरी की विधा में इस गीत का राग -संगीत तबले की थाप बांसुरी की सुर में जीवन की सच्चाई को ब्यक्त करती है ।

छत्तीसगढ़ की इतिहास को झांक कर देंखें तो यहाँ की इतिहास यहाँ की संस्कृति ,तीज -त्यौहार ,गीत -संगीत अपने गौरव गाथा को समेटे रखा है । यहाँ की प्राचीन संस्कृति ,ऐतिहासिक प्रसिद्ध स्थल और प्राकृतिक सुंदरता छत्तीसगढ़ की समृद्धि की बोध कराती है ।
यहाँ की साहित्य यहाँ की नदी -नाले समाज को जोड़ती है ।चाहे वह शबरी का धाम हो चाहे गिरौदपुरी धाम या सोनाखान की भूमि ।महानदी की अविरल धारा पैरी -सोंढुर का संगम जो हमारे विश्वास के प्रतीक हैं । छतीसगढ़ की पहचान है भरथरी ,पंडवानी ,ढोला -मारू ,चंदैनी लोक कथा यहाँ की समृद्धि की गौरव ही तो है ।

छत्तीसगढ़ की अंतर्राष्ट्रीय भरथरी लोककथा गायिका श्रीमती सुरुज बाई खांडे का नाम छत्तीसगढ़ वरन ही नहीं विदेशों में भी जाने जाते हैं । सुरुज बाई खांडे ने भरथरी विधा में छत्तीसगढ़ की गौरव और मान बढ़ाया आज हमारे बीच नहीं है पर उनकी आवाज आज भी हमें उनकी याद दिलाती रहेगी ।

बड़ों का बचपन उनकी आत्मकथा नई पीढ़ी के लिए नई सिख देने वाली होती है । वैसे ही सुरुज बाई खांडे के जीवन संस्मरणों को जब -जब इतिहास के पन्नों में दर्ज की जायेगी गांव की एक गरीब परिवार और उनकी तख़फ़ीफों से दो चार होना पड़ेगा । उनकी पारिवारिक जीवन पर जब -जब प्रकाश डाला जायेगा उनके तखलीफ़ों की एक लंबी दस्ता मन को हमेशा कौंधते ही रहेगा । उनकी साक्षात्कारों पर नजर डालें तो उनकी प्रबल इच्छाओं में एक बड़ी इच्छा थी उन्हें भरथरी विधा पर पद्मश्री मिले पर ऐसा नहीं हो पाया और उनकी आवाज के साथ उनकी यह इच्छा भी उनकी साथ इतिहास के पन्ने में दब गई । सरकार को इस विषय में आज भी विचार करने की जरूरत है, और सुरुज बाई को सम्मान की जो छत्तीसगढ़ की गौरव है ।

रायपुर के वरिष्ठ साहित्यकार सुशील भोले अपने संस्मरण में खांडे जी को याद करते हुए लिखते हैं कि रायपुर के मोती बाग में पहली बार “जगार ” कार्यक्रम में सुरुज बाई खांडे के भरथरी गायन की प्रस्तुति देखा था उसी समय उनसे मुलाकात हुई थी ,और तब उनके जीवन के अनछुए पहलुओं को जाना था । वे अपने बारे में कहती हुई बोली थी मैं पढ़ी -लिखी नहीं हूं मेरे नाना राम साय घृतलहरे मुझे जो बताते हैं जो सिखाते हैं वह सभी कंठस्त हो जाती है । वरिष्ठ साहित्यकार लिखते हैं कि जो लोकप्रियता सुरुज बाई खांडे को भरथरी में मिली वह और किसी को नहीं मिल पाया ।

भरथरी गायिका सुरुज बाई खांडे का जन्म बिलासपुर जिला के कस्बा बिल्हा के गांव पौंसरी में 12 जून 1949 में हुआ था । माता का नाम रेवती बाई और पिता का घसिया उनकी विवाह महज 10 -11 वर्ष में ही हो गई थी ऐसा इतिहासकारों का माना है ।उनका विवाह रतनपुर के कछार में लखन लाल खांडे से हुई थी उन्होंने 04 बच्चों को जन्म दिया पर ईलाज के अभाव में अपने बच्चों को खो दिया उन्हें बच्चों का प्यार नहीं मिल सका और रोजी रोटी के लिए बिलासपुर के

सरकंडा में रहने लगे वही जीवन यापन करने लगे । उनका जीवन बहुत संघर्ष भरा रहा । वे बचपन से ही भरथरी गायन के प्रति रुचि रखती थी उनके नाना रामसाय भरथरी गाते थे उनकी ही जीवन शैली से प्रभावित रहे और वे भरथरी लोकविधा में पारंगत हो गए । वे जब तक रही भरथरी की प्रस्तुति देती रहीं । 10 मार्च 2018 की वह सुबह सुरुज बाई खांडे के जीवन का अंतिम दिन था और उनकी हृदयघात हो गई वे 69 वर्ष की थी ।इस दिन भरथरी की सुरमोहनी आवाज अस्त हो गई । सुरुज बाई खांडे ने अपने नाना से भरथरी ,ढोला -मारू ,चंदैनी लोककथा विधा सीखी थी और भरथरी लोक विधा में अपने और छत्तीसगढ़ का गौरव और मान बढ़ाया था जो समाज के लिए और नई पीढ़ी के लिए धरोहर के रूप में जाने जाएंगी ।

सुरुज बाई खांडे छत्तीसगढ़ ही नहीं विदेशों में भी अपनी प्रस्तुति दी थी यही नहीं 1986 -87 में सोवित रूस में भारत महोत्सव में अपना छाप छोड़ी थी यही नहीं वे 18 से अधिक प्रदेशों में भरथरी विधा की अलख जगाते हुए अपनी प्रस्तुति दी थी ।

उन्हें कई सम्मान से नवाजा भी गया था जिसमें मध्यप्रदेश शासन ने देवी अहिल्या बाई सम्मान और छत्तीसगढ़ में दाऊ रामचन्द्र देशमुख ,स्वर्गीय देवदास बंजारे स्मृति सम्मान से सम्मान किया गया था ।

भरथरी विधा में सुरुज बाई खांडे का नाम इतिहास के पन्नों में हमेशा याद किया जाएगा उनकी इस विधा में उनके पति लखन लाल खांडे अंतिम समय तक उनके सहयोगी के रूप में साथ देते रहे । समाज में उनकी इस कार्य की हमेशा प्रंसन्सा होगी ।आज सुरुज बाई खांडे जी का 05 वां पुण्यतिथि पर उन्हें सादर भावांजलि अर्पित करता हूँ । उनकी भरथरी विधा नई पीढ़ी के लिए धरोहर के रूप में जिंदा रहेगी ।

Lahre

लक्ष्मी नारायण लहरे “साहिल,
साहित्यकार पत्रकार
(सह -सम्पादक छत्तीसगढ़ महिमा रायपुर )
कोसीर जिला -सारंगढ़ -बिलाईगढ़ (छत्तीसगढ़ )
09752319395

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