साल दर साल बीतता चला जा रहा है। पर मेरे लिए उस शख्शियत को भुला पाना संभव नहीं हो पा रहा है। बार रूम में मेरे सीनियर यशस्वी एडवोकेट यशवंत षड़ंगी जिसने अपने वकालत पेशे को बड़ी संवेदना,इंसानियत और पवित्रता, के साथ पूरी गरिमा प्रदान करते हुए निभाया और एक यशस्वी एडवोकेट के रूप ख्याति प्राप्त की । अचानक इस संसार को छोड़कर हमेशा के लिए हमसे दूर चले गए। तुम याद बहुत आते हो।
बिरले व्यक्तित्व के धनी,समर्पित – एकाग्रचित्त एवं कर्तव्यनिष्ठ वकालत के साथ-साथ,सामाजिक सेवा, मानवीय मूल्यों को जीने वाले,संघर्षशील व्यक्तित्व, शांत और सौम्य स्वभाव के धनी तथा शैक्षणिक संस्थाओं,सांस्कृतिक संघठनों में सहभागिता, कथनी और करनी की समता के सद्गुगुणों से सुसंपन्न स्व. यशवंत षडंगी को भुला पाना सभ्रांत बिरादरी के लिए संभव नहीं है।
काफी संघर्षपूर्ण जीवन जीते हुए उन्होंने जीवन के यथार्थ को बहुत नजदीक और गहराई से समझा इसीलिए उनके वकालत और जीवन में इंसानियत और संवेदनाएं उच्चतर थी। हर कदम पर सफलता उनका स्वागत करने लगी। बहुत जल्द ही एक प्रतिष्ठित अधिवक्ता की शृंखला की प्रथम पंक्ति में शामिल हो गए। समाज के हर क्षेत्र में, सामाजिक,सांस्कृतिक, धर्मार्थ, क्रीड़ा ,एवं शैक्षणिक संस्थाओं में उद्देश्यपूर्ण संबद्धता बढ़ने लगी। कभी भी अपने लक्ष्य से डिगे नहीं। हर जिम्मेदारी को पूरी ईमानदारी,और जिम्मेदारी के साथ निर्वहन किया।
जीवन के संघर्षों ने भाई यशवंत षड़ंगी को बहुत कुछ सिखाया।सामाजिक प्रतिबद्धता को जीवन श्रेष्ठ लक्ष्य बनाया।लक्ष्य हीन महत्वकांछा कभी नहीं रही । “एक ऐसा अवसर आया जब स्व. यशवंत षडंगी जी को माननीय मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय जबलपुर (म.प्र.) में न्यायमूर्ति पद पर नियुक्ति के लिए प्रस्ताव आया इसे उन्होंने आदर सहित अस्वीकार किया क्यूंकि वे व्यक्तिगत हित से सामाजिक जिम्मेदारियों को सर्वोपरि रखा। सामाजिक, सांस्कृतिक,धार्मिक,शैक्षणिक संस्थाओं तथा स्थानीय समाज व परिवार को पलायन करने के पक्ष में नहीं थे।
यशवंत षड़ंगी जी का जन्म रायगढ़ रियासत में राजपुरोहित षडंगी परिवार में हुआ। उन्होंने वकालत को श्रेष्ठ क्षितिज पर पहुंचाने की कला अपने पूज्य पिता स्व. श्री बिपिन बिहारी षडंगी (अधिवक्ता) से जन्मना विरासत में पायी तो मातुश्री श्रीमती सुभाषिनी से पारिवारिक एकजुटता, सामंजस्य और वाक् कला की बहुआयामी शैली पायी उनके परिवार में चार बहनों और तीन भाइयों में यशवंत ज्येष्ठ भ्राता होने के कारण पिता के असामयिक निधन वर्ष 1980 में होने से परिवार की पूरी जिम्मेदारी उनके काधों पर आ गई।
जीवन संगिनी सुश्री कमल प्रभा षड़ंगी एल आई सी में सेवारत थीं तथा सुपुत्री प्रीति जिसने डेंटल सर्जन की डिग्री गोल्ड-मेडल के साथ प्राप्त की और पवीणता के साथ PHD हासिल किया। वर्तमान में सुपुत्री श्रीमती प्रीति सकुशल दांपत्य जीवन के साथ भुवनेश्वर में निवास रत है। यह भी एक बिरले संयोग का यशस्वी उदाहरण है कि स्व. यशवंत षड़ंगी जिस स्थानीय स्वामी बालकृष्ण पूरी विधि महाविद्यालय रायगढ़ से विधी में स्नातक की उपाधी पाई , वे उसी विधि महाविद्यालय में प्राध्यापक हुए और शनैः-शनैः उक्त महाविद्यालय के प्राचार्य पद की आसंदी पर विराजे और कालांतर में उक्त महाविद्यालय के प्रशासक का गौरव शाली पद भी संभाला.
स्व.षडंगी जी ने प्रतिष्ठित अधिवक्ता श्री डी.डी.मिश्रा के
सानिध्य में रह कर वकालत के गुर सीखे। वर्ष 1976 में अधिवक्ता के रूप में पंजीयन उपरांत उन्होंने सन 1977 से जिला अधिवक्ता संघ रायगढ़ की सदस्यता ग्रहण करने के साथ-साथ जिला न्यायालय रायगढ़ से वकालत के पेशे को आरम्भ किया । षडंगी जी ने वकालत के पेशे को पूरी गौरव गरिमा के साथ श्रेष्ठ मुकाम तक पहुंचाने में सफल रहे। नगर एवं जिले के वित्तीय संस्थानों, भारतीय स्टेट बैंक, सेंट्रल बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, अल्लाहबाद बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक सहित अनेकों कंपनीयों तथा प्राइवेट कमर्शियल बैंक की ओर से प्रकरणों में पैरवी की इसी प्रकार भारतीय खाद्य निगम, भारत संचार निगम लिमिटेड, ओरिएण्टल जनरल इन्सुरेंस कंपनी के अलावा नगर पालिक निगम रायगढ़ तथा जिले की अंन्य नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों के लिए भी पैरवीकार रहे. सन 1993 से निरंतर 1998 की अवधी में शासकीय अभिभाषक का दायित्व निर्वहन भी किया.
वकालत के पेशे में स्वयं के व्यक्तिव को कभी भी किसी राजनैतिक दल की सीमाओं में अवरुद्ध नहीं होने दिया और यही वजह है कि, उनकी छवि सदैव जन-सरोकारी अधिवक्ता के रूप में बनी रही यह सर्व-विदित एवं प्रचलित रहा कि, अनेकों परस्पर विरोधी लोग जो आपस में बातें नहीं करते थे परन्तु ऐसे विरोधी पक्ष जब उनसे रूबरू होते तो दोनों ही पक्ष उनकी समझाइश और सलाह को बे-हिचक सादर स्वीकार कर लेते थे और ऐसा प्रयास वे इसलिए करते थे जिससे विवाद न बढे और न्यायालय की दलहीज पर न पहुंचे. उनके ज़्यादातर मुवक्किल उन्हें अपने पारिवारिक सदस्यों की तरह समझते थे, उनकी मिलनसारिता सभी आयोजनों और गोष्ठियों में पूरी संजीदगी के साथ देखी जाती थी और वे समाज से जुड़े रहते थे.
स्व. यशवंत षडंगी को शिक्षा के क्षेत्र में रुझान बाल्यकाल से ही स्व. भवानी शंकर षडंगी के व्यक्तिव ने इतना प्रभावित किया और इसी के चलते स्व.यशवंत षडंगी ने सरस्वती शिशु मंदिर शिक्षण संस्था, स्वामी बालकृष्ण पुरी विधि महाविद्यालय, श्री जगन्नाथ मंदिर ट्रस्ट, श्री चंद्रहासिनी देवी मंदिर ट्रस्ट चंद्रपुर, उत्कल समाज सेवा संस्कृति, स्व. भवानी शंकर षडंगी स्मृति विद्यालय से सदैव जुड़े रहे। ह्यूमन राईट ऑर्गनाइजेशन (HUMAN RIGHTS ORGANIZATION) की ओर से स्थानीय बुजी-भवन में आयोजित कार्यशाला में विशिष्ठ अतिथि की आसंदी से मानवाधिकारों के लिए कानून में व्याप्त विसंगतियों को दूर करने तथा आम-आदमी की सुरक्षा और भविष्य के लिए बेबाक टिपण्णी करने से परहेज नहीं किया.
नवागंतुक जूनियर अधिवक्ताओं को सदैव इस बात के लिए प्रेरित किया करते थे कि, अधिवक्ता को सदैव जरूरतमंद और दूसरों की सहायता के लिए तत्पर रहना चाहिए, वकालत के पेशे में अधिवक्ता को गणवेश के साथ अनुशासन में और न्यायालय के प्रति आदर भाव रखते हुए अपने सहयोगी और विरोधी पक्ष के अधिवक्ता के प्रति खुले मन से प्रस्तुत होना चाहिए, स्व.षडंगी के जूनियर अधिवक्ताओं में अंबिका प्रसाद मौर्य, संतोष मिश्रा,किशोर थावईत, मोतीलाल पटेल के संबोधन में यह व्यक्त किया जाता है कि, स्व.षडंगी का सादगीपूर्ण व्यवहार, ऑफिस का संचालन और फाइलिंग, ब्रीफिंग तथा मुवक्किलों से निर्देशों को सर्वाधिक अहमियत देते थे, निःसंदेह प्रशिक्षु अधिवक्ताओं के लिए वे सदैव पथ-प्रदर्शक रहे है, जूनियर अधिवक्ताओं की व्यक्तिगत जरूरतों, समस्याओं को जानने समझने और हल करने में पीछे नहीं रहते थे और जूनियर की समस्याओं को उसी अनुभूति से ग्राह्य करते थे जिस प्रकार से मुक़दमे में अपने मुवक्किलों के लिए समग्र प्रयास करते थे।
वस्तुतः वकालत तथा वकालत से बाहर सामाजिक सरोकार से सतत जुड़ाव ,सहयोग और सेवा भाव ने आपको यशस्वी बना दिया था। यही कारण है कि ऐसे शख्स स्मृतियों से विस्मृत नहीं होते।
पुण्य तिथि (18 अक्टूबर) पर पुण्य स्मरण।
सादर नमन।
बासुदेव शर्मा (अधिवक्ता) (संस्मरण एवं स्मृति)
गणेश कछवाहा (संकलन)
रायगढ़ छत्तीसगढ़.
मो.नं. 94062-18607/9425572284