रिपोर्ट सैयद रागिब अली..
रोज़ बढ़ती दरारें, खिसकती जमीन, स्थानीय लोगों के माथे पर चिंता की लकीरें,डर और ख़ौफ के साय में ज़िन्दगी गुज़ारने को मजबूर जोशीमठ शहर के 500 से अधिक परिवार। प्रशासन को भी तुरंत कोई समाधान नजर नहीं आ रहा, उत्तराखंड से लेकर दिल्ली तक में बैठे शासन प्रशासन के लोग इस समस्या के स्थाई समाधान के लिए माथापच्ची में लगे हुए हैं। जोशीमठ शहर में 1976 से बज रही है ख़तरे की घंटी, भूस्खलन व भूधंसाव की घटनाएं निरंतर बढ़ रही है। जलवायु परिवर्तन, लैंडस्लाइड, ग्लेशियर पिघलने, क्लाइमेट चेंज,व कम होते वृक्ष व जंगल की वजह से इस पहाड़ी शहर जोशीमठ में यह विपदा मुंह उठाए खड़ी है। जिससे निपटने के लिए कोई उपाय समझ नहीं आ रहे हैं।
इसके अलावा अनियोजित व अनियंत्रित निर्माण निर्माण कार्य ने भी इस शहर को तबाही के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है। इन दिनों बस यही कहानी है जोशीमठ के लोगों की, इनकी आगे की जिंदगी किस तरह से गुजर बसर होगी यह किसी को चिंता नहीं है लोगो के मायूस चेहरे छलकती आंखें इनका दर्द बयां करती है टूटी दीवारों और घरों से लेकर टूटते दिल तक की यह कहानी बड़ी भयानक है।
उत्तराखंड की इस पवित्र धरती और पवित्र शहर जोशीमठ को बचाने के लिए सरकारी तंत्र अपने प्रयासों में लगा हुआ है। पर यह प्रयास नाकाफी नज़र आ रहे हैं। टूटते हुए अपने सपनों के घरों को लोग अपनी आंखों के सामने बिखरता हुआ देख रहे हैं इन लोगों को घर तो मिल जाएंगे लेकिन इनकी यादें जो इस इनके घरों से जुड़ी हुई है वह शायद ना मिले हार और मायूसी और अंधकार भविष्य की चिंता है इनके टूटते हुए सपने इनके आंखों के सामने धराशाई हो रहे हैं।
धीरे-धीरे दरक रहा है पहाड़
आदि शंकराचार्य की इस धरती पर वैज्ञानिकों के अनुसार कई बार चेतावनी दी गई लेकिन अनियोजित निर्माण और अनियंत्रित निर्माण ने लगभग 600 परिवारों की जिंदगी को उजाड़ दिया है धार्मिक महत्ता का प्रतीक जोशीमठ आज असहनीय पीड़ा के दौर से गुजर रहा है जिसका दर्द उसके अपनों ने ही दिया है।और उसका दर्द बांटने वाला कोई नजर नहीं आ रहा है।धीरे-धीरे पहाड़ खिसक रहा है और पहाड़ पर बने हुए मकान अपनी बुनियाद को छोड़ते हुए टूट रहे हैं घरों के साथ लोगों के दिल भी टूट रहे हैं आदिपुर शंकराचार्य ने यहां पर 25000 वर्ष पूर्व अखंड ज्योत जलाकर जिस हिंदू धर्म की दीक्षा शिक्षा और दिशा तय की आज उसकी कोई सुनने वाला भी नहीं है।