देखी, देखी, छद्म सेकुलरवालों की चालबाजी देखी! रामनवमी गुजरी नहीं कि आ गए एक बार फिर रामभक्तों को गुमराह करने। कहते हैं कि जैसे बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मप्र, गुजरात वगैरह, कम से कम आठ राज्यों में भक्तों ने, मस्जिदों वगैरह पर चढ़ार्ई कर के रामनवमी मनायी है, वह तो रामनवमी मनाने का सही तरीका नहीं है। नये इंडिया के नये तरीकों की नहीं कहते, पर कम-से-कम पुराने भारत में रामनवमी मनाने का यह तरीका नहीं था। ऐसी हथियार दिखाऊ, आग लगाऊ और डीजे बजाऊ रामनवमी देखकर, राम जी खुश तो हर्गिज नहीं होंगे। कहां मर्यादा पुरुषोत्तम और कहां ये कृत्य नराधम; यह राम का नाम फैलाना है या राम का नाम बदनाम करना। देखो ए दीवानो तुम ये काम ना करो, राम का नाम बदनाम ना करो!
यानी घुमा-फिराकर भक्तों से ही रामनवमी नहीं मनाने के लिए कहा जा रहा है! क्यों भाई, क्यों? रामनवमी अगर जोरों से भारत में नहीं मनायी जाएगी, तो क्या पाकिस्तान या अफगानिस्तान में मनायी जाएगी! भक्तों से ही कब तक यह कहा जाता रहेगा कि रामनवमी हंसी-खुशी से मनाओ, रामनवमी में न किसी मस्जिद-गिरजे में आग लगाओ, न किसी का खून-वून बहाओ। दूसरों से क्यों नहीं कहते कि रामजी की शोभायात्रा निकल रही है, तो जरा शहर से बाहर निकल जाएं, मस्जिदों वगैरह को शोभायात्रा के रास्ते से दूर ले जाएं। खैर, अब तक सुनी, सो सुनी, अब भक्तगण शांति-वांति की ऐसी बातें हर्गिज नहीं सुनेंगे। अब तो रामनवमी हो तो, हनुमान जयंती हो तो, विजयदशमी हो तो, हिंदू नववर्ष हो तो, अपना हर त्यौहार ऐसे ही मनाएंगे कि अपने चाहे याद नहीं रखें, पर दूसरे कभी भूल नहीं पाएंगे। और चुनाव में भी रामभक्त पार्टी वाले भर-भरकर प्रसाद पाएंगे।
और अब क्या ये सेकुलरवाले हम नये इंडिया के रामभक्तों को बताएंगे कि हम कैसे रामनवमी मनाएंगे, तो राम जी खुश होंगे, कैसे मनाने से राम जी नाखुश होंगे? रामजी हमारे और सिर्फ हमारे हैं; वे किस से खुश होंगे, इसका फैसला भी उनकी तरफ से हम ही करेंगे, कोई दूसरा नहीं। वैसे भी हमने इनकी शांति-शांति की किटकिट सुनी होती, तो अयोध्या में भव्य राममंदिर बन ही नहीं सकता था। रामलला या तो मस्जिद में ही बैठे रह जाते या मस्जिद गिर भी जाती, तो भी तम्बू में ही बैठे रह जाते। और ग्यारहवें विष्णु अवतार जी…। वैसे भी रामनवमी आखिरकार है तो रामलला की बर्थ डे पार्टी का ही मामला। अब अगर बर्थ डे में भी डीजे-वीजे भी नहीं होगा, तो क्या होगा? बर्थ डे पार्टी में तो डीजे भी होगा, पीना-खाना भी होगा और तलवार-तमंचों का चमकाना भी होगा। हमारे यहां तो गली-टोले के दादाओं तक के बर्थ डे में हर्ष फायरिंग आम है, रामलला के बर्थ डे पर, उनसे तो ज्यादा धूम-धड़ाका बनता ही है। माना कि हर्ष फायरिंग में कभी-कभी, खुशी की जगह मातम भी मन जाता है, लेकिन इसी से हम हर्ष फायरिंग को खुशी के मौकों से दूर थोड़े ही कर देंगे। वह तो शुक्र मनाएं कि हमारी हर्ष फायरिंग अभी तक इकनाली, दुनाली या ज्यादा से ज्यादा पंचफेरा की फायरिंग पर ही रुकी हुई है, वर्ना अफगानिस्तान वगैरह में तो सुना है कि खुशी की फायरिंग में भी पूरी मैगजीन खाली कर देते हैं। हमारे रामलला कब तक, इक्का-दुक्का फायर के ही स्वागत से बहलाए जाएंगे।
रही बात राम का नाम नाम बदनाम होने की तो, भक्तों को कम-से-कम इसका डर कोई न दिखाए। बदनाम होगा, तो भी राम का नाम ही होगा! वो मरा-मरा जप के मोक्ष पाने वाले का किस्सा सुना तो होगा।
(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)