क्या बुद्ध भी अपने संघ में स्त्रियों के प्रवेश को लंबे समय तक वर्जित रखा

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बुद्ध और स्त्रियां !

बहुत से लोग यह मानते रहे हैं कि स्त्रियों के प्रति बुद्ध के विचार उस युग के हिन्दू धर्म से ज्यादा प्रगतिशील और मानवीय था। यह मान्यता भ्रम पर ही आधारित है। स्त्रियों के प्रति बुद्ध के विचार भी कुछ कम प्रतिगामी थे। उन्होंने अपने संघ में स्त्रियों के प्रवेश को लंबे समय तक वर्जित रखा। कालांतर में अपने प्रिय शिष्य आनंद के दबाव में उन्हें भिक्षुणी संघ बनाने की अनुमति देनी पड़ी थी। भिक्षु आनंद स्त्रियों के स्वतंत्र व्यक्तित्व और क्षमताओं के प्रबल समर्थक थे। इस विषय पर बुद्ध और उनके कई दूसरे शिष्यों से उनके वैचारिक मतभेद रहे थे। इस विषय पर बौद्ध ग्रंथ ‘अंगुत्तर निकाय’ के चौथे निपात में आनंद और बुद्ध का एक वार्तालाप है जिसे पढ़ा जाना चाहिए।

भिक्षु आनंद ने बुद्ध से पूछा- भंते, क्या कारण है कि स्त्रियों को सार्वजनिक सम्मेलनों में स्थान नहीं दिया जाता। उन्हें व्यापार करने की अनुमति नहीं दी जाती ? वे कोई स्वतंत्र काम-धंधा कर अपनी आजीविका क्यों नहीं कमा सकतीं ?

बुद्ध ने उत्तर दिया – आनंद, स्त्रियां क्रोधी होती हैं।ईर्ष्यालु होती हैं। प्रतिस्पर्द्धाशील होती हैं। मूर्ख होती हैं। यही कारण है कि वे सार्वजनिक सम्मेलनों में भाग नहीं ले सकतीं। व्यापार नहीं कर सकतीं। स्वतंत्र धंधा कर जीविकोपार्जन भी नहीं कर सकतीं।

बुद्ध और आनंद के बीच स्त्रियों को लेकर वैचारिक मतभेद में अपने जीवन के अंतिम वर्षों में बुद्ध को झुकना पड़ा और बौद्ध संघ में स्त्रियों का प्रवेश संभव हुआ।
(संदर्भ ‘अंगुत्तर निकाय’ / पालि भाषा और साहित्य, लेखक इंद्र चंद्र शास्त्री, प्रकाशक हिंदी माध्यम कार्यान्वय निदेशालय, दिल्ली विश्वविद्यालय)

ध्रुव गुप्त जी के फेसबुक वॉल से 

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