जो दिव्य जल हमें आकाश से वर्षा द्वारा प्राप्त होता है,जो जल खोदकर कुओं, जलाशयों से निकाला जाता और जो नदियों में प्रवाहित हो अपनी पवित्रता बिखेरते हुए समुद्र की ओर प्रस्थान करता है, हम उस दिव्य, पवित्र जल को प्रणाम कर अपनी जीवनरक्षा की प्रार्थना करते हैं। (ऋग्वेद)
जिन देवी-देवताओं को हमने कभी देखा नहीं हैं, उनके मंदिरों और उनकी स्तुतियों ने हमारे जीवन का बड़ा हिस्सा घेर रखा है। जो जीवित देवी-देवता हमारी आंखों के आगे हैं, यदि हमने उनकी भी इतनी ही चिंता की होती तो यह दुनिया आज स्वर्ग से भी सुन्दर होती। हमारे वास्तविक देवी-देवताओं में ऊपर सूरज, नीचे धरती तथा जल और बीच में हवा है। यही चार प्रामाणिक देवी-देवता हैं जो सृष्टि की रचना भी करते हैं और पालन भी। इनके बगैर कोई भी जीवन संभव नहीं। सूरज हमारे नियंत्रण में नहीं। उसकी अपनी गति है जिसपर हम आश्रित हैं। धरती हमारी देखभाल की मोहताज़ नहीं। वह हमारी गंदगी भी अपने सीने में छुपाकर हम पर हरियाली और सौंदर्य लुटाती रही है। बाकी दो देवता – हवा और जल ऐसे हैं जिन्हें हमारी देखभाल, सम्मान और संरक्षण की आवश्यकता है। आज विकास की अंधी दौड़ में जिस विशाल स्तर पर हम हवा और पानी को प्रदूषित करने में लगे हैं, उससे पृथ्वी के अस्तित्व पर ही संकट उपस्थित हो गया है। लगातार आने वाली खबरें इसकी तस्दीक करती हैं। हमारे अनाचार के कारण हमारी नदियां जहरीली भी हो रही है और सिकुड़ भी रही हैं। तालाब और जलाशय मर रहे हैं। धरती के भीतर पानी का स्तर गिर रहा है। भविष्य के जल संकट की आहटें साफ़ सुनाई देने लगी हैं। यदि समय रहते हम नहीं जगे तो विनाश दूर नहीं। कहा भी जा रहा है कि अब अगला विश्वयुद्ध भूमि या सत्ता के लिए नहीं, जल के लिए लड़ा जाएगा।
आज ‘विश्व जल दिवस’ है। पानी के संरक्षण और उसकी उचित खपत के संदेश को प्रसारित करने के लिए पूरी दुनिया इस दिवस को मनाती है। आज के दिन हम सबको बधाई अथवा शुभकामनाओं की नहीं, चेतावनी की ज़रुरत है ! हमें अब चेत जाना चाहिए। महानगर मुनादी कर रहे हैं।
आलेख: ध्रुव गुप्त