क्या है आदिवासी एक्सप्रेस?
अविभाजित मध्य प्रदेश के समय से राज्य में आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने की कई असफ़ल कोशिशें हुई हैं| मजाक के तौर पर इसको आदिवासी एक्सप्रेस कहा जाता है| छत्तीसगढ के संदर्भ में महेंद्र कर्मा और रामविचार नेताम ने खुल कर जोर लगाया| नंदकुमार साय बरसों तक इस मुद्दे पर बयानबाजी करते रहे लेकिन पार्टी नेतृत्व या कुछेक विधायकों ने भी कभी उनका समर्थन नहीं किया| नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने की अब तक की सबसे संगठित कोशिश शुरु हो रही है|
क्या मुश्किल है?
राज्य में जनसंख्या का बड़ा हिस्सा होने के बावजूद कांग्रेस-भाजपा का नेतृत्व आदिवासी प्रवर्ग से मुख्यमंत्री बनाने के खिलाफ़ रहा है| आदिवासी विधायकों में आपसी एकता की भारी कमी और कुशल प्रशासन की अयोग्यता की अफ़वाह भी मुश्किलें पैदा करती है|
इस बार नया क्या है?
विधानसभा चुनाव 2023 में आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने की कोशिश कई मायनों में खास है| आदिवासियत अभिशासन प्रकल्प के तहत इस बार संविधान-जानकार बी.के. मनीष को प्रमुख रणनीतिकार की जिम्मेदारी मिली है| तकरीबन दस उम्मीदवारों के लिए इस तरह जोर लगाया जा रहा है कि चुनाव में कांग्रेस जीते या भाजपा, मुख्यमंत्री आदिवासी ही बने| कार्य-योजना तैयार करने से पहले चार दशकों की नाकामी की गहरी स्टडी की गई है| दो करोड़ रुपए के शुरुआती बजट और चरणबद्ध टाईम टेबल के साथ रायपुर में वॉर-रूम बनाया जा रहा है|
क्या रणनीति है?
आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने के लिए 7-बिंदु मुहिम के साथ काम किया जा रहा है|
1. प्रतिरोध की काट के लिए कांग्रेस-भाजपा दोनों दलों में से चुन कर तकरीबन दस उम्मीदवारों के लिए जोर लगाया जाए| दोनों दलों के नेतृत्व से जवाब मांगा जाए कि आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने की पूर्व-घोषणा करने में क्या आपत्ति है?
2. जन-चेतना के लिए सामग्री तैयार करना जिससे मूल छत्तीसगढिया और अन्य मतदाताओं को आदिवासियत अभिशासन प्रकल्प के फ़ायदे बताए जा सकें| इस तरह यह कोई जातिवादी प्रयास के बजाए सर्वांगीण सामाजिक न्याय की मुहिम के तौर पर समझा जा सके| इसमें सैद्धांतिक स्पष्टीकरण के अलावा ठोस कार्य-योजना के लिए विधेयकों-योजनाओं की रूप-रेखा भी शामिल होगी|
3. आदिवासी युवाओं को आदिवासियत अभिशासन का जमीनी प्रचार करने के लिए तैयार करना| इससे जनता को यह समझाया जा सकेगा कि लूट-खसोट और अय्याशी का वर्तमान चलन छत्तीसगढिया परंपरा के खिलाफ़ है| दुनिया का सबसे भारी जनसंख्या वाला देश बनने के बाद भारत में वैश्विक ताप के जाहिर खतरे से बचाव के लिए ढोंग छोड़ कर साहसी-अलोकप्रिय फ़ैसले लेने की जरुरत है|
4. जनजातीय-आरक्षण का लाभ ले चुके अधिकारियों को निजी स्वार्थ, भ्रामक सूचना और जातिवादी सोच के साथ अब तक काम करने की सार्वजनिक माफ़ी मांगने को प्रेरित किया जाए| आदिवासियत अभिशासन के खिलाफ़ भितरघात करने और पत्थलगढी जैसे प्रचार से सामुदायिक उर्जा बर्बाद करने की परंपरा खत्म की जाए|
5. आदिवासी मतदाताओं से अपील की जाए कि हर आदिवासी प्रत्याशी से सार्वजनिक वचन लें कि वह गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री के लिए मत नहीं देगा| यह भी कि यदि वह स्वयं मुख्यमंत्री चुना गया तो अपनी पार्टी के किसी भी आदिवासी प्रतिनिधि के खिलाफ़ कैसा भी उकसावा होने पर कोई भी नकारात्मक राजनैतिक कार्रवाई-बयान तीन सालों तक टालेगा|
6. चिन्हित उम्मीदवारों को लोक प्रशासन और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति पर संचार का विशेष प्रशिक्षण प्रस्तावित किया जाए| इससे जनता आदिवासी मुख्यमंत्री उम्मीदवार को मात्र आदिवासी राजनयिक के बजाए राष्ट्रीय-वैश्विक विचारक और प्रशासक के तौर पर देख सके|
7. आदिवासी युवाओं से चयन कर के 2024 में शैडो सचिवालय स्थापित किया जाए| इससे आदिवासी मुख्यमंत्री पर आदिवासियत अभिशासन के एजेंडे पर पर्याप्त और तेजी से काम करने का दबाव रखा जा सके| इसके प्रतिभागियों को कम से कम पांच साल तक किसी भी राजनैतिक नियुक्ति या चुनाव से दूर रहने का सार्वजनिक वचन देना होगा|