कोल प्लांट पाइप लाइन पर होने वाले इस सर्वे के मुताबिक़ जहां एक ओर नयी कोयला बिजली परियोजनाओं की कमीशनिंग बीते वर्षों में अपने निचले स्तर पर रही है, वहीं नई परियोजनाओं के लिए प्लान भी बन रहे हैं और पुराने कम आउटपुट और एफ़िशियेन्सी वाले प्लांटों को बंद करने की कोई स्पष्ट योजना नहीं दिख रही।
रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत ने 2022 में केवल 3.5 गीगावाट (GW) नई कोयला बिजली क्षमता पर खर्च किया है। 2020 में होने वाली महामारी की मंदी को छोड़ दें तो, यह 2014 के उच्च स्तर के बाद सबसे कम वार्षिक वृद्धि थी, और 2015 से 2022 तक भारत की प्री कंस्ट्रक्शन कोल पावर क्षमता भी लगभग 88% घटकर 28.5 GW हो गई।
रिपोर्ट से पता चलता है कि 2022 में दुनियाभर में कोल पावर कैपेसिटी पर होने वाला आउटपुट 26 गीगावाट (GW) तक पहुंच गया, और 2030 तक इसमें 25 GW का इज़ाफ़ा होने की घोषणा की गई है। भारत की नियोजित क्षमता में 2.6 GW की वृद्धि हुई, लेकिन ये अभी भी चीन के प्रस्तावित कोयला विस्तार से काफी पीछे है, जो दुनिया के बाकी हिस्सों में नियोजित किये जाने वाले कोयले से कटौती की योजना बना रहा था। चीन के बाहर, वैश्विक कोयले का बेड़ा छोटा हुआ है हालांकि पिछले वर्षों की तुलना में ये धीमी गति से कम हुआ है।
रिपोर्ट में इस बात पर रोशनी डाली गई है कि पेरिस समझौते के बाद से कोयले पर काम के दौरान- या निर्माण से पहले ये दो तिहाई तक गिर गया है, अभी भी 33 देशों में लगभग 350 GW नई क्षमता प्रस्तावित है, और इसके अतिरिक्त 192 GW क्षमता निर्माणाधीन है। भारत में 28.5 GW कोयला बिजली क्षमता के उत्पादन की योजना है, जिसमें से लगभग एक तिहाई की अनुमति पहले से ही मिल चुकी है, और 32 GW कोल पावर क्षमता निर्माणाधीन है। विकास के मामले में तमिलनाडु, ओडिशा और उत्तर प्रदेश कोल पावर की उच्चतम क्षमता वाले राज्य हैं।
ट्रैक पर बने रहने के लिए, दुनिया के अमीर देशों को 2030 तक सभी मौजूदा कोल प्लांट्स को तथा बाक़ी दुनिया को 2040 तक सभी को बंद करना होगा ताकि किसी भी नए कोल प्लांट के ऑनलाइन आने के लिए कोई जगह न रहे। नई प्रस्तावित कोल पावर कैपेसिटी में काफी गिरावट आई है, जबकि दुनिया मौजूदा कोल प्लांट को पर्याप्त तेजी से बंद नहीं किया जा रहा है।
तैयार की गई कोल पावर को 2040 तक समाप्त करने के लिए वैश्विक स्तर पर प्रति वर्ष औसतन 117 GW रिटायरमेंट की ज़रूरत होगी, जो कि पिछले वर्ष की तुलना में साढ़े चार गुना अधिक है। ओईसीडी देशों में प्रत्येक वर्ष 2030 तक औसतन 60 GW का प्रयोग कोल फेज़ आउट को समय सीमा में पूरा करेगा, और गैर-ओईसीडी देशों को प्रत्येक वर्ष 2040 तक 91 GW का प्रयोग करना होगा। संज्ञान में लेते हुए निर्माणाधीन और विचाराधीन (537 GW) कोल प्लांट्स की गहराई को और बढ़ाने की आवश्यकता होगी। भारत अबतक केवल 15.7 गीगावाट ख़ारिज कर चुका है। 30 वर्ष से अधिक पुरानी इकाइयों में 30 GW से अधिक ऑपरेटिंग कोल कैपेसिटी के साथ भारत को पुरानी, प्रदूषणकारी इकाइयों को जल्द से जल्द ख़ारिज करने के लिए तंत्र का अनुसरण करना चाहिए और रिनिवल ऊर्जा का समर्थन करने के लिए साइटों का फिर से उत्पादन करना चाहिए।
“जितनी अधिक नई ऑनलाइन कोयला परियोजनाएँ आती हैं, उतनी ही अधिक खदान की गहराई और प्रतिबद्धताएँ भविष्य में होने की आवश्यकता होगी।” ये कहना है फ्लोरा चंपेनोइस का, जो कि ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर की ग्लोबल कोल प्लांट ट्रैकर के लिए रिपोर्ट और प्रोजेक्ट मैनेजर की प्रमुख लेखिका है। “इस दर पर, जलवायु अव्यवस्था से बचने के लिए मौजूदा और नए कोयले का इस्तेमाल इतनी तेजी से नहीं हो रहा है। IPCC और UN दोनों ने ग्लोबल स्तर पर कोयले की शक्ति को कम करने के लिए मार्चिंग ऑर्डर का नवीवीकरण किया है, जो कि वार्मिंग प्लेनेट के सबसे बड़े नुकसान से बचने का हमारा आखिरी मौका हो सकता है।
“बेहतरीन योजना और काम करने के तरीके के साथ भारत के पास चरम मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त कोयला क्षमता है। यह बिजली स्टेशनों पर कोयले के भंडार और इसकी निकासी की बदइंतिज़ामी से जुड़ा है, जो खासकर उच्च मांग के समय में बिजली की कमी की वजह बनता है, न कि बिजली उत्पादन या कोयला खनन क्षमता की कमी।‘’ ये कहना है सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) के विश्लेषक सुनील दहिया का। “नए कोल प्लांट्स की स्थापना या नई कोयला खदानें बनाने से स्थिति और भी खराब होगी, जिसके नतीजे में कोयला खनन और बिजली क्षेत्र में फँसी हुई सम्पत्तियों का नुकसान होगा, जिससे पुराने जंगल और वन्य जीवों को भी नुकसान पहुंचेगा, इसका असर पुब्लिक हेल्थ और सामाजिक भलाई पर पड़ेगा। भारत को सभी कन्ज़ूमिंग सेक्टर के लिए नई कोल और पीकिंग कोल ईयर टारगेट पर एक स्पष्ट नीति की ज़रूरत है।