छत्तीसगढ़ी भाषा और साहित्य को अधिक से अधिक अमीर बनाने वाले साहित्यकारों और साहित्यिक पत्रकारों में डॉ. राजेन्द्र सोनी का नाम भी सम्मान के साथ लिया जाता है। वे छत्तीसगढ़ी के प्रथम क्षणिका लेखक और प्रथम लघुकथाकार थे। स्वर्गीय डॉ. राजेन्द्र सोनी को आज उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र नमन । वह हिन्दी लघु कथा आंदोलन के भी सशक्त हस्ताक्षर थे। उनका जन्म 9 अगस्त 1953 को ग्राम घुमका (जिला-राजनांदगांव )में हुआ था । निधन 28 दिसम्बर 2015 को कवर्धा में अपने सुपुत्र अमित के निवास में हुआ। डॉ.
राजेन्द्र पेशे से आयुर्वेदिक चिकित्सक थे ,लेकिन अपनी व्यस्त डॉक्टरी दिनचर्या के बीच साहित्य सृजन के लिए भी समय निकाल लेते थे। राजधानी रायपुर में उन्होंने लगभग चालीस वर्षों तक साहित्य साधना के साथ -साथ आयुर्वेदिक चिकित्सक के रूप में समाज को अपनी मूल्यवान सेवाएं दी। स्वर्गीय डॉ .सोनी पहले ऐसे कवि थे , जिन्होंने वर्ष 1977 -78 में छत्तीसगढ़ी भाषा में क्षणिका और हायकू लेखन का नया प्रयोग किया ।वर्ष 1979 -80 में प्रकाशित उनका छत्तीसगढ़ी क्षणिका संग्रह ‘दुब्बर ल दू असाढ़ ‘ काफी लोकप्रिय हुआ । इस क्षणिका संकलन से डॉ. राजेन्द्र सोनी छत्तीसगढ़ी कविता की इस नयी विधा के प्रथम कवि के रूप में पहचाने जाने लगे। इसी तरह वर्ष 1976 और 1983 में प्रकाशित ‘खोरबाहरा तोला गांधी बनाबो’ उनकी छत्तीसगढ़ी लघु कथाओं का संकलन है ।। इन लघु कथाओं ने साहित्यिक बिरादरी में उन्हें छत्तीसगढ़ी भाषा की प्रथम लघुकथाकार के रूप में प्रतिष्ठित किया।
कई महत्वपूर्ण विशेषांक
उन्होंने वर्ष 1984 में हिन्दी लघु पत्रिका ‘पहचान ‘ का सम्पादन और प्रकाशन शुरू किया । आगे चलकर इसका नाम उन्होंने ‘पहचान -यात्रा’ रख दिया। भारत के समाचार पत्रों के पंजीयक (आर.एन. आई. )से उन्हें इसी नाम से पंजीयन मिला था। इसके माध्यम से उन्होंने कई वरिष्ठ तथा नवोदित साहित्यकारों को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई । उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित और प्रशंसित हो चुकी हैं । साहित्यिक पत्रिका ‘पहचान यात्रा ‘ के कई महत्वपूर्ण विशेषांक भी निकले । इनमें से कई विशेषांक छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ साहित्यकारों पर केन्द्रित हैं। ये विशेषांक काफी चर्चित और प्रशंसित भी हुए । इनमें पद्मश्री मुकुटधर पाण्डेय विशेषांक (दिसम्बर 1986 ), कला -संस्कृति विशेषांक (अक्टूबर -दिसम्बर 2001), हरि ठाकुर विशेषांक (जनवरी -जून 2002), नारायण लाल परमार विशेषांक (अप्रैल 2004) और भगवतीलाल सेन पर केन्द्रित अंक (जनवरी -मार्च 2007) भी शामिल हैं। उन्होंने डॉ.पालेश्वर शर्मा पर भी एक विशेषांक प्रकाशित किया था ।
अपनी इस पत्रिका का जनवरी -जून 2005 का संयुक्तांक उन्होंने ‘व्यंग्य विशेषांक ‘ के रूप में निकाला । सितम्बर 2004 का अंक ‘राष्ट्रीय एकता एवं नगर माता बिन्नी बाई ‘ विशेषांक ‘ के रूप में प्रकाशित हुआ, वहीं जनवरी -जून 2009 का संयुक्तांक उन्होंने ‘दलित चेतना विमर्श अंक ‘ के रूप में प्रकाशित किया ,जिसके अतिथि सम्पादक आलोक कुमार सातपुते और संजीव खुदशाह थे ।
खोरबाहरा तोला गाँधी बनाबो
डॉ. राजेन्द्र सोनी का छत्तीसगढ़ी लघु कथा संग्रह ‘खोरबाहरा तोला गाँधी बनाबो ‘आंचलिक साहित्य की एक महत्वपूर्ण व्यंग्यात्मक कृति है। इसका प्रथम संस्करण मई 1976 में और द्वितीय संस्करण मई 2003 में प्रकाशित हुआ । इसमें डॉ. सोनी द्वारा वर्ष 1968 से 1975 और वर्ष 1980 से 1985 के बीच लिखी गयी लघु कथाएं शामिल हैं। है । द्वितीय संस्करण ‘शिक्षा दूत प्रकाशन ‘ रायपुर द्वारा प्रकाशित किया गया था ।
‘डॉ. सोनी की छत्तीसगढ़ी क्षणिकाओं के संकलन ‘दुब्बर ला दू अषाढ़ ‘ है छत्तीसगढ़ी भाषा का पहला क्षणिका संग्रह और ‘खोरबाहरा तोला गाँधी बनाबो ‘ पहला लघु कथा संग्रह माना जाता है । अपने इस छत्तीसगढ़ी लघुकथा संग्रह में उन्होंने हमारे भारतीय समाज की विसंगतियों और विडम्बनाओं पर छोटी -छोटी कहानियों के जरिये तीखा व्यंग्य प्रहार किया है।
इसकी बानगी ‘समाचार ‘ शीर्षक इस लघु कथा में देखिए —
नगर निगम ह आज अवैध कब्जा हटाय ख़ातिर अभियान चला के, सेठ के बड़खा महल के बाजू म बइठे संतरा ,केरा अउ भाजी बेचइया औरत मन के झऊंहा, चरिहा अउ टुकनी ल झींक-पुदक के ले गे ।
आज एक झन मोटियारी टुरी रिक्सा म बइठ के थाना के आगू ले होवत रात के 10 बजे अपन घर बने -बने लहुटिस।
एक झन नेता ल जिला मजिस्ट्रेट ह चुनाव म खड़े होवइया हे , तेखर सेती साफ -सुथरा चरित्तर के परमान पत्र देइस।
अब राजभवन , संसद भवन ,विधान सभा भवन अउ जम्मो मंतरी के बंगला म पांच बच्छर फल देवय , अइसे विदेसी फलदार रुख लगाय जाही ।
संग्रह की पहली लघु कथा ‘खोरबाहरा तोला गाँधी बनाबो ‘ शीर्षक से है। करुणाजनित इस व्यंग्य की शुरुआती झलक देखिए –
खोरबाहरा के ग़रीबी के का बरनन करन । ओखर टुरा बुधारु चिरहा पेंठ के सेती खड़ा तक नइ हो सकत हवय।,मंदरसा जाय बर टुरा लजाथे। खोरबाहरा हेडमास्टर रिहिस ।तउन ह रिटायर होगे हवय। सरकार संग पेंसन ख़ातिर लड़त-लड़त बुढ़वा होगे। अपन जमाना के ओ हा बीसकुटा सुनाथे त अचंभा लगथे । ओखर पढ़हाय टुरा सुतंत्र कुमार एसो चुनाव जीत गे त गांव वाले मन भारी जुलूस निकालीन । विधायक सुतंत्र कुमार अपन गांव म धाक जमाय ख़ातिर मंतरी जी ला निमत्रंन भेजिस । विधायक खोरबाहरा मेर जाके विनती करिस -” गुरुजी ! छब्बीस जनवरी के मंतरी जी अवइया हे, तोर मुहरन गाँधी जी कस दिखथे । तेखर सेती तोला झांकी म गाँधी बनाके बइठारबो ।
— ” गाँधी -फांधी के बात ल छोड़ रे बाबू । मोर पेंसन ख़ातिर कुछु कर ।एक लाँघन ,एक
फरहार जीयत हंवव । “
दुब्बर ल दू असाढ़
अपनी छत्तीसगढ़ी क्षणिकाओं के संकलन ‘दुब्बर ल दू असाढ़’ में भी डॉ.राजेन्द्र सोनी सामाजिक विसंगतियों के बीच दम तोड़ती मानवता को बहुत नज़दीक से महसूस करते हैं । जैसे ‘अपरेसन’ शीर्षक इस क्षणिका को देखिए –
नसबन्दी के बदला म
डाकटर भूख के अपरेसन करतिस
तव ,सिरतोन म मोर देस म
रासन सस्ती बेचातिस ।
उनकी एक क्षणिका ‘डउकी के नाम ‘ शीर्षक से है ,जिसमें सिर्फ़ 15 शब्दों में भारतीय समाज में पति की मौत के बाद महिलाओं की क्या दशा होती है ,पति के माध्यम से उसका संकेत दिल को छू जाता है –
उड़ा जाहय जब मोर
परान पखेरू
तव , तोला लगही
ये ज़माना मोर अरथी ले गरू ।
डॉ. राजेन्द्र के इस छत्तीसगढ़ी क्षणिका संग्रह के आमुख में जाने -माने साहित्यकार स्वर्गीय हरि ठाकुर ने लिखा है – “राजनीति का ढकोसलापनऔर समाज का खोखलापन उनके व्यंग्यों के माध्यम से उजागर होते हैं । कविताएँ छोटी हैं किन्तु उनमें बड़ी बातें कही गयी हैं ।कथ्य का बड़प्पन ही कविता को जीवित रखता है ,न कि उसका लम्बापन । छत्तीसगढ़ अंसतोष , उपेक्षा ,अन्याय और शोषण के ज्वालामुखी पर बैठा है।इन कविताओं के भीतर वही ज्वालामुखी पनप रहा है ।”
इस क्षणिका संग्रह की भूमिका में प्रदेश के प्रसिद्ध कवि और लेखक स्वर्गीय नारायणलाल परमार ने लिखा था -” छत्तीसगढ़ी में धारदार व्यंग्य -कविताओं का यह पहला संग्रह है।इसमें व्यंजना शक्ति का अदभुत विकास सहज ही देखा जा सकता है।इससे उतपन्न करुणा को पलायनवादी कदापि नहीं कहा जा सकता ।बल्कि कहना होगा कि यह हमारे जड़ -आचरण पर प्रहार करता है । ”
उनके लघु कथा संग्रह ‘खोरबाहरा तोला गाँधी बनाबो ‘ की भूमिका में साप्ताहिक ‘छत्तीसगढ़ी सेवक ‘ के सम्पादक जागेश्वर प्रसाद ने इसे छत्तीसगढ़ी लघु कथाओं का पहला संग्रह बताया है।
डॉ. सोनी का लेखन वर्ष 1970 से लगातार चल रहा था। उनकी पहली रचना वर्ष 1973 में छत्तीसगढ़ी भाषा के प्रथम साप्ताहिक समाचार पत्र ‘छत्तीसगढ़ी सेवक ‘ में प्रकाशित हुई थी । इसके बाद विभिन्न पत्र — पत्रिकाओं में उनकी सैकड़ों रचनाएँ छपीं। भारत के हिन्दी साहित्य जगत में लघु कथा लेखक के रूप में उन्हें विशेष पहचान और प्रतिष्ठा मिली । उन्होंने छत्तीसगढ़ में लघु कथा लेखन को एक साहित्यिक आंदोलन के रूप में विस्तारित किया। उनसे अनेक नये रचनाकारों को लघु कथा लिखने की प्रेरणा मिली । अपनी पत्रिका ‘पहचान यात्रा ‘ के लगभग हर अंक में वह देश और प्रदेश के साहित्यकारों की लघु कथाएं भी प्रकाशित करते थे।
अब तो सिर्फ़ उनकी स्मृतियाँ ही शेष रह गयी हैं । विनम्र श्रद्धांजलि ।
–स्वराज करुण