काव्य संग्रह: कामकाजी औरतें….

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बिखरे बाल ,थकी चाल
झुके कंधे और सिलवट पड़ी साड़ी वाली,
घर पहुंचने की जल्दबाजी में
दौड़कर बस पकड़ने वाली,
उस कमाऊ स्त्री को ,
क्या कभी ध्यान से,
देखा है तुमने??
अक्सर वो स्त्री,
अपनी थकान छुपाती है,
हल्की पिंक लिपिस्टिक लगा मुसकाती है।
बालों में मेंहदी लगाना अक्सर ,
अगले इतवार तक टरकाती है।
अक्सर उसकी अधूरी कविताएं,
उसके रचे ख्वाब,
उसके आफिस बैग के
छोटे खाने की चेन के अंदर,
मिलते हैं कागज़ पर अक्षरों की शक्ल में।
अक्सर पूरा शरीर और आधा मन लिए,
रहतीं हैं ये महिलाएं आफिस,घर
और मेले बाजार में।
शायद जीती हैं ये जिंदगी,
कुछ नगद , कुछ उधार में।

– श्रीमती अंजना तिवारी (शिक्षिका) , फैज़ाबाद (उ.प्र.)

लिंक पर तस्वीर लेखिका के है।

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